Monday, May 7, 2012

Lamhen




इक  अरसा हुआ लिखे
मगर  वक़्त  का  क्या
जब  जब  लिखे  हैं ....बस  तब  तब  जिए  हैं
मेरे  अतीत  के  वीराने  में
बस  कुछ  वही  लम्हें  रह  गए  हैं
सियाही  जो  चख  गए  हैं
कागज़  पे  जो  उतार  गए  हैं
है  मंज़र  कई  याद  हमें
मगर  जज़्बात  सारे  खो  गए  हैं
उन  खंडरों  में  अब  बस्ता  नहीं  है  कोई
जिन्हें  लिख  दिए  वोह  साथ  चल  दिए
बाकि  सब  जाने  कहाँ  चल  दिए
चेरे  याद  हैं  उनके
गर  हैं  फिर  भी  अनजाने  वोह
बरहाल  जो  छोटा  सा  कारवाँ हे
अब  बस  वही  ज़िन्दगी  है

हे राम तुझे कैसे पूजूं



राम तुझे कैसे पूजूं 
हे राम  तुझे कैसे पूजूं 
हे युग पुरुष, तेरे त्रुटियों को कैसे भूलूँ 
इस पूरण सभ्यता का 
तू नीव है, सारांश है 
तेरे पुरुषार्थ के प्रतिभिम्भ पर  
है धर्म स्तापित, मर्यादा बंधी  
राम नाम से जना, राम नाम से बना 
राम सेतु ही सामान 
श्रद्धा एवं भक्ति से  
निर्मित यह सम्पूर्ण सभ्यता
कर दशानन को धरा 
तुने बुधि, शक्ति, समृद्धि पे  
अहंकार और अथिक्रमण पे 
सत्य साहस स्नेह को 
सही को स्तापित किया 
हे युग पुरुष फिर क्या हुआ 
सीता पे क्यों अन्याय हुआ 
गर सीता पे न यकीन था 
तो युद्ध फिर था 
सिर्फ मान अपमान का
तेरे शंका का भी सीता ने मान किया 
तेरे ही नेत्र समक्ष  
स्वयं को अग्नि से परीक्षित किया 
जिसे अग्नि न झुटला सकी 
जो शास्वत सत्य था 
तेरे प्रजा के संकोच पे  
तुने उस सत्य का...सीता का क्यों त्याग किया 
वर्त्तमान प्रजा तंत्र भी  
तेरे राज्य का प्रथिभिम्भ है 
सत्य से बड़ा यहाँ आज भी बहु मत है 
न्याय को दीखता नहीं 
जो सुना वही सही 
तेरे दिखलाये मार्ग पे  
चल रही यह सभ्यता 
इस सभ्यता का तू 
इतिहास भी, वर्त्तमान भी 
और इच्छित भविष्य भी 
हे राम अब तू ही बता 
मैं तुजे कैसे पूजूं  
हे युग पुरुष तेरे त्रुटियों को कैसे भूलूँ