इक अरसा हुआ लिखे
मगर वक़्त का क्या
जब जब लिखे हैं ....बस तब तब जिए हैं
मेरे अतीत के वीराने में
बस कुछ वही लम्हें रह गए हैं
सियाही जो चख गए हैं
कागज़ पे जो उतार गए हैं
है मंज़र कई याद हमें
मगर जज़्बात सारे खो गए हैं
उन खंडरों में अब बस्ता नहीं है कोई
जिन्हें लिख दिए वोह साथ चल दिए
बाकि सब जाने कहाँ चल दिए
चेरे याद हैं उनके
गर हैं फिर भी अनजाने वोह
बरहाल जो छोटा सा कारवाँ हे
अब बस वही ज़िन्दगी है
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